इंतज़ार करता हूँ तेरा हर दोपहर को मैं
की आएगी तू अपने कॉलेज से,
सफेद शर्ट पहने हुए चश्मा लगाए
कुछ कहती हुई अपने आप से।
मैं भी खड़ा रहता हूं धूप में तेरे लिए
की आएगी तू वापस अपनी स्कूटी से,
कभी देखता हूं कभी पहचानता हूं आवाज
पूछता हूं तेरा हाल आने जाने वाली स्कूटी की आवाज से।
दिन गुज़र जाता है तेरी एक झलक पाने को
और दिखता है तेरा चेरा भरा हुआ शिकन से,
बेचैन सा हो उठता हूं देख कर तेरी आंखें
कि मैं तुम्हें देखता हूं या तू भी मुझे देखती है प्यार से।
अब तो तेरा और भी दीवाना हो गया है
देख कर तुझे काली कुर्ती और डेनिम की जैकेट में,
पर मुस्कुराता हुआ नहीं देखा कभी तुझे
बस एक बार मुलाक़ात करवा दे अपनी मुस्कान से।
Feedback